• Home
  • हिंदी फिल्मों की टॉप गजलें…

हिंदी फिल्मों की टॉप गजलें…

anews Banner

दिखाई दिए यूं के बेखुद किया…हमें आपसे भी जुदा कर चले…

पिछली सदी के क़रीब चौथे दशक में हिंदी फिल्मों के लिए पहली गज़ल रिकॉर्ड हुई। फिल्म ‘दुनिया न माने’में शांता आप्टे ने पहली ग़ज़ल गाई थीं। निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की फिल्म ‘मिर्जा गालिब’ का फ़िल्म जगत में अहम स्थान है। इस फिल्म में ग़ज़लों के बादशाह तलत महमूद और गायिका सुरैया की गाईं ग़ज़लें काफ़ी पसंद की गईं।

कालांतर में शकील बदायूंनी, हसरत जयपुरी, मजरुह सुल्तानपुरी, साहिर लुधियानवी, नक्श लायलपुरी, जावेद अख्तर, निदा फाजली, गुलजार, गोपाल दास नीरज सहित अन्य शायरों-गीतकारों ने हिंदी फिल्म जगत को एक से एक बेहतरीन ग़ज़लें दी। ग़ज़ल का पिता मीर तकी मीर को माना जाता है। मीर की कुछ ग़ज़लें हिंदी सिनेमा में आज भी महक रही हैं। 

1982 में प्रसारित ‘बाजार’ फिल्म की गज़ल 

‘दिखाई दिए यूं के बेखुद किया
हमें आपसे भी जुदा कर चले’

ये ग़ज़ल मीर की ही देन है। ख़य्याम के संगीत में लता मंगेशकर की कर्णप्रिय आवाज़ ने इसमें चार चांद लगाए तभी तो यह सर्वाधिक लोकप्रिय ग़ज़लों में शुमार की जाती है। मीर के साथ ग़ालिब, मोमिन खान, फैज़ अहमद फैज़, साहिर लुधियानवी की ग़ज़लों ने भी हिंदी फ़िल्मों में रुहानियत बिखेरी है। 

इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है…1999 में रिलीज हुई फिल्म  ‘सरफ़रोश’ की गज़ल ने फिल्म को दर्शकों के और नज़दीक कर दिया था। जाने माने शायर निदा फ़ाज़ली द्वारा लिखी इस ग़ज़ल ने नायक आमिर खान और नायिका सोनाली बेंद्रे के बीच प्रेम की अनुपम स्वीकृति को दुनिया के सामने ज़ाहिर किया है। गज़ल गायक जगजीत सिंह की आवाज में मोहब्बत की यह नायाब मौसीक़ी सदैव गूंजते रहेगी। 

‘होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है’

जिंदगी धूप तुम घना साया…1982 में प्रसारित फ़िल्म ‘साथ-साथ’ में गीतकार और लेखक जावेद अख़्तर की ग़ज़लें मन को अजीब सा सुकून दी थीं। 

‘तुमको देखा तो ये ख्याल आया 
जिंदगी धूप तुम घना साया’

 ‘ये तेरा घर ये मेरा घर 
 ये घर बहुत हसीन है’

तुमको देखा तो ये ख्याल आया’ पंक्ति को जब सबके अजीज जगजीत सिंह अपनी सुरमयी आवाज में पिरोते हैं तो यह एक तरह से प्रेम की अंतिम सीमा की सुनहरी व्याख्या ही हो सकती है।
इसी फिल्म में ये तेरा घर, ये मेरा घर की पंक्तियों को सुरेश वाडेकर ने अपनी मोहिनी आवाज से सदैव के लिए सुपरहिट कर दिया है। यह गज़ल एक छोटे से घर में दो प्रेमियों को असीम उत्साह और आशा से भर देती है। इस गज़ल के बोल अभाव में भी ढेर सारे भाव का बोध कराते हैं। फिर छिड़ी रात बात फूलों की…रात है या बारात फूलों की…तलत अजीज की आवाज में ‘बाजार’ फिल्म की मखदुम मोहिउद्दीन द्वारा रचित गज़ल 

‘फिर छिड़ी रात बात फूलों की 
रात है या बारात फूलों की’

एक तरह से समय के झीने पर्दे को तार-तार करते हुए आज भी रोमांस का ताजा एहसास कराती है। 
और मेरे एक खत में लिपटी रात पड़ी है…1987 में प्रसारित फिल्म ‘इजाजत’ में गुलजार रचित गज़ल 

‘मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है 
ओ ओ ओ ! सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
और मेरे एक खत में लिपटी रात पड़ी है
वो रात भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है’

प्रेम और उसकी समर्पण अनुभूति को उच्चतम सीमा पर ले जाकर मन को एक गहरा ठहराव देती है। लता मंगेशकर की आवाज ने इसे गीत और मनुहार का सबसे बेहतर संयोजन बना दिया है।क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो…1982 में प्रसारित फिल्म ‘अर्थ’ में प्रसिद्ध शायर कैफी आजमी द्वारा रचित गज़ल 

‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो
तुम इतना…

जगजीत सिंह की मधुर आवाज में प्रेम और उसके संपूर्ण भावों को काफी लंबा आयाम दे रही है। प्रेम में गम और दुख की बयार को इससे बेहतर कोई और गज़ल पेश नहीं कर सकती। हिंदी फिल्मों में गज़लों की बात करें और पाकीजा तथा उमराव जान की गज़लों का जिक्र न हो यह संभव ही नहीं, इन फिल्मों की गज़लें सदैव जवां रहकर मन को महकाती रहेंगी। …….कहिए तो आसमां को जमीन पर उतार लाएं1981 में प्रसारित फिल्म ‘उमराव जान’ में  प्रसिद्ध शायर शहरयार की गज़ल

‘दिल चीज है क्या आप मेरी जान लीजिए 
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए

…….कहिए तो आसमां को जमीन पर उतार लाएं
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए’ 

इस गजल ने मन को एक लंबी सिरहन से भर दिया था। इसका अंतिम अंतरा मन को दुनिया के संघर्षों से लड़ने की असीम शक्ति देता है। इसके अलावा ‘उमराव जान’ में ही इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं….तथा जुस्तजु जिसकी थी उसको तो न पाया हमने…गजलों ने भी हिंदी फिल्मों में काफी लोकप्रियता हासिल की है। 

गहरी सोच के साथ ऐसी पेशगी गज़लों का मन में दूर तक असर करती है…हिंदी फिल्मों में गज़लों को बेहतरीन गायकों ने हसीन मुकाम दिया है। जिनमें तलत महमूद, सुरैया, गुलाम अली, जगजीत सिंह, तलत अजीज, नुसरत फतेह अली खान प्रमुख हैं। फिल्मों में हमेशा गज़ल को महफ़िल के माहौल में दर्शाया जाता है और उसका पिक्चराइज़ेशन भी गम और उसकी संजीदगी को आधार बनाकर किया जाता है।

गहरी सोच के साथ ऐसी पेशगी गज़लों का मन में दूर तक असर करती है। बहुत ही भावुक और प्यारभरे शब्दों के जरिए गायक इसे शब्दों में पिरोते हैं। नयी फिल्मों के गीत-संगीत पर काफी लोग अपनी नाराजगी व्यक्त करते रहते हैं लेकिन नई फिल्मों में भी गज़ल की उपस्थिति एक हद तक लोगों की नाराजगी को दूर करने में कामयाब हो रही है। 

Source kavya desk

Log in imranjalna.com